Bhopal

भोपाल:अग्रिवेश का बयान बनेगा दिग्विजय की दिक्कत-बुर्के को लेकर दिए बयान से मुस्लिम समाज में नाराज़गी

भोपाल :श्रीलंका में हुए विस्फोट और उसके बाद बुर्के पर लगाए गए प्रतिबंध का असर हिन्दुस्तान में एक सियासी चर्चा के रूप में नजर आने लगा है। बुर्का पहने और न पहनने को लेकर चल पड़ी चर्चाओं ने सियासी सरगर्मियों को तेज कर दिया है। बुर्का प्रतिबंध की पैरवी कर रही भाजपा लगातार इसे लेकर भड़काऊ बयान देकर मामले को गर्मा रही है, जबकि मुस्लिमों को अपना वोट बैंक मानने वाली कांग्रेस ने भी इस मामले को ठंडा करने जैसी कोई कोशिश नहीं की। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के पक्ष में प्रचार करने भोपाल आए स्वामी अग्निवेश के बयान ने मुस्लिमों को नाराज कर दिया है।

भोपाल लोकसभा प्रत्याशी दिग्विजय सिंह को मुस्लिम मतदाताओं से बड़ी उम्मीदें लगी हुई हैं। उनके मुकाबले चुनाव मैदान में मौजूद साध्वी प्रज्ञा के मुस्लिमों को लेकर दिए जा रहे जहरीले बयानों ने दिग्विजय के हौसले और बढ़ा दिए हैं। उन्हें लग रहा है कि राजधानी के करीब साढ़े चार लाख मुस्लिम मतदाताओं के पास अब कांग्रेस केी तरफ जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं है। इन हालात को अपने पक्ष में करने के लिए वे लगातार मुस्लिम क्षेत्रों में अपना प्रचार कर रहे हैं और उनकी टीमों ने भी इन क्षेत्रों में माहौल बना रखा है।

बुर्का करेगा गजब

देश मेंं बुर्का बैन करने को लेकर शुरू हुई चर्चा को भुनाने के लिए कांग्रेस द्वारा प्रायोजित एक कार्यक्रम में लेखक-गीतकार जावेद अख्तर ने बुर्का पहनने की पैरवी कुछ अलग अंदाज में की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर बुर्का पहनना बंद किया जाना प्रस्तावित किया जाता है तो देश में मौजूद पर्दा और घूंघट प्रथा भी बंद कर देना चाहिए। जावेद के इस बयान कई समाजों को नाराज किया था और इसको लेकर चर्चाओं का दौर फिलहाल थमा भी नहीं था और एक नए बयान ने मुस्लिमों को नाराज कर दिया है। दिग्विजय सिंह के प्रचार के लिए भोपाल आए स्वामी अग्निेवेश ने बुर्का पर पाबंदी लगाने की पैरवी करते हुए यह तक कह दिया है कि बुर्के में महिलाएं भयावह और डरावनी नजर आती हैं। उन्होंने बुर्का पहनने वाली महिलाओं की तुलना इंसानों से हटकर कर दी है। अग्रिेवेश के इस बयान को राजधानी भोपाल में नाराजगी के साथ लिया जा रहा है और इसका सीधा असर दिग्विजय सिंह की मुखालिफत की तरफ जाता दिखाई देने लगा है।

मजहब में सियासत का घालमेल क्यों 

राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार जफर आलम ने कहा कि सियासत करने वालों ने अब विकास और तरक्की की बात को साइड लाइन कर मजहब को अपना हथियार बना लिया है। अमन-सुकून और भाईचारे के साथ रहने वाले देशवासियों को धर्म की भट्टी में झोंककर उसपर सियासत और सत्ता की खिचड़ी पकाने के सफल प्रयोग को बार-बार दोहराया जा रहा है।

चुनावों का ट्रेंड बदल गया अब

पं. श्याम मिश्रा कहते हैं कि राज करने के लिए अपनाई जाने वाली नैतिकता लगातार कहीं खोती जा रही है, जिसकी जगह पहले नीति ने ली और अब वह कूटनीति बनकर रह गई है। राजनैतिक की बजाए राजनीतिक होने का असर यह है कि सत्ता पाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की हर नीति अपनाई जा रही है। इस बदले ट्रेंड का खामियाजा सीधे आमजन को भोगना पड़ रहा है।

किसी को अपमानित कर खुद बड़े कैसे होगे
यासिर अराफात का कहना है कि कोई भी मजहब इस बात की इजाजत नहीं देता कि दूसरे के धर्म की तौहीन या बेहुरमती की जाए। अपने मफाद की खातिर दूसरों को जलील करना और उनके लिए अनर्गल कहना-करना न सिर्फ दुनियावी तौर पर गलत है, बल्कि इससे दुनिया बनाने वाला भी खुश नहीं होगा, उसकी नाराजगी किसी भी पल ऐसे राजतंत्र को ढ़हा देगी, जिसकी बुनियाद षडय़ंत्र और साजिश की नींव पर रखी गई हो।

Please follow and like us:
Pin Share

Leave a Reply