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मुख्यमंत्री विवाह-निकाह योजना की राशि पर लालचियों की नजर

भोपाल। महंगे होते शादी खर्च और हाथ पीले होने से वंचित होतीं गरीब कन्याएं… सरकार ने एक राहतभरी योजना पेश की और कई लोगों के लिए आसानियां का सबब बन गई। लेकिन लालचखोरों ने इस सरकारी योजना को भी अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। योजना के आंकड़े बढ़ाने के लिए जहां सरकारी मशीनरी कागजों की जांच-परख में कोताही बरतती नजर आ रही है, वहीं मोटी रकम अपनी जेब के हवाले करने के फेर में स्वयंसेवी संस्थाओं ने शादीशुदा जोड़ों को सम्मेलन का हिस्सा बनाने का गोरखधंधा अपना लिया है।
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री विवाह-निकाह योजना की राशि में हुई दोगुनी वृद्धि के बाद राजधानी में होने वाले विवाह-निकाह सम्मेलन की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है। इन सम्मेलन को आयोजित करने वाले स्वयंसेवी संस्थाओं की संख्या मेंभी अचानक वृद्धि हो गई है। हालात यह हैं कि एक माह में एक ही तारीख में एक से अधिक स्थानों पर विवाह-निकाह सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। जिनमें शामिल होने वाले जोड़ों की तादाद भी सैकड़ा पार से कम नजर नहीं आ रही है।

यह हो रहा गोंडोबल

सूत्रों का कहना है कि हर माह में एक से अधिक बार होने वाले विवाह-निकाह सम्मेलन में संस्थाओं द्वारा ऐसे जोड़ों को शामिल किया जा रहा है, जो पहले से शादीशुदा हैं। योजना के तहत मिलने वाली राशि की बंदरबांट करने के मकसद से किए जा रहे इस गोरखधंधे को इस बात से और अधिक हवा मिल गई है कि इसमें शामिल होने वाले जोड़ों की उम्र का बंधन सरकार ने हटा लिया है। बताया जाता है कि राजधानी के नए और पुराने इलाके में तेजी से शादी सम्मेलन करने वाले स्वयंसेवी संस्थाओं की तादाद बढ़ गई है, जो सम्मेलन में शामिल किए जाने वाले युवक-युवतियों को तलाशने, उन्हें गोरखधंधे में शामिल होने के लिए राजी करने और इसके लिए माकूल लालच देने में सारा समय गुजारते दिखाई देते हैं।

सरकारी मजबूरियां

जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री विवाह-निकाह योजना के लिए सरकारी तौर पर नगरीय निकाय को जिम्मेदारी सौंपी गई है। विभिन्न मदों में मिलने वाली करीब 51 हजार रुपए की राशि के वितरण के लिए नोडल एजेंसी बनाए गए निकायों को मासिक लक्ष्य भी सौंप दिए गए हैं। इसके मुताबिक निकाय को हर वार्ड से प्रत्येक सम्मेलन में 4 जोड़े शामिल करवाने की बाध्यता तय की गई है। इस लक्ष्य को हासिल करने निकाय अधिकारी-कर्मचारी पूरी तरह स्वयंसेवी संस्थाओं और सम्मेलन माफियाओं पर निर्भर हो गए हैं। जिसके चलते इनके द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों की जांच से लेकर उनके वैवाहिक स्थिति की खोज करने की जहमत वे नहीं उठा रहे हैं। नतीजा यह है कि सम्मेलनों में एनजीओ द्वारा अपनी आमदनी बढ़ाने और निकाय लक्ष्य को पूरा करने शादीशुदा जोड़ों को एक से अधिक बार विवाह सूत्र में बांधने में कोताही नहीं कर रहे हैं।

कितनी संस्थाएं, निगम के पास नहीं हिसाब

सूत्रों का कहना है कि अचानक बढ़े सम्मेलन संस्थाओं की अधिकृत संख्या और जानकारी निकाय के पास मौजूद नहीं है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि उनके पास आने वाले दस्तावेजों और आवेदनों के आधार पर वे सम्मेलन की अनुमति जारी कर देते हैं। इन्हीें दस्तावेजों के आधार पर वे हितग्राहियों को राशि भी जारी कर देते हैं।

हो सकता है बड़ा खुलासा

राजधानी में तेजी से बढ़ रहे विवाह-निकाह कारोबार की गंभीरता से जांच की जाए तो एक बड़ा विवाह माफिया गिरफ्त में आ सकता है। इसके साथ ही विभाग द्वारा की जा रही कोताहियों और अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए की जा रही नजरअंदाजियों का बड़ा मामला भी सामने आ सकता है।
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