अंकुश विश्वकर्मा
हरदा खिरकिया:जैन समाज तप, त्याग, संयम का पाठ सिखाता है, यही नही कठिन तपस्याओ के माध्यम से यह पूरा होता है। जिनमे से एक वर्षीतप भी होता है। वर्षीतप वर्ष भर से अधिक समय तक चलने वाली कठिन तपस्या होती है। जैन श्वेताम्बर समाज की तीन श्राविकाओ द्वारा वर्षीतप किए। जिनके प्रारंभिक चरण पूर्ण हुए। जिनमे वर्षीतप आराधिका मीनू मेहता, विजया रांका एवं राजश्री मेहता द्वारा तप किए जा रहे है। मीनू मेहता का एकासन तप से यह तप चार वर्षों तक चलता है। तप का यह पहला पड़ाव है। वही विजया रांका के एकासन वार्षिक तप का दूसरा वर्ष है। राजश्री मेहता का उपवास से वर्षीतप गतिमान है। यह तप दो वर्षों में पूंर्ण होगा। अक्षयतृतीया पर तप का वर्ष पूर्ण होने पर पारणा होगा। विजया रांका के तप का पालन प्रवर्तक जिनेन्द्र मुनि की निश्रा में थांदला होगा, वही राजश्री मेहता का पालन साश्वत तीर्थ पालितना गुजरात मे होगा।
क्या है वर्षीतप, क्यो है कठिन
इस तप का आरम्भ फाल्गुन कृष्णा (अष्टमी) से होता है,े फिर 400 दिनों तक अर्थात 13 महीने और 11 दिवस एकांतर उपवास किया जाता है। एक दिन निराहार उपवास किया जाता है, फिर दूसरे दिन आहार ग्रहण किया जाता है। प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव परमात्मा को दीक्षा अंगीकार करने के बाद लाभांतराय कर्म का उदय होने से 400 दिन तक उन्हें निर्दोष भिक्षा की प्राप्ति नहीं हुई थी। इस कारण उन्होंने दीक्षा दिन से 400 निर्जल उपवास किये थे। उस तप की स्मृति में यह वर्षीतप किया जाता है। इसे संवत्सर तप भी कहा जाता है। वर्षीतप की अवधि एकासन तप के लिए चार वर्ष एवं उपवास वालो के लिए 2 वर्ष मानी गई है।