भोपाल:राजधानी भोपाल में लोकसभा चुनाव के लिए तीस उम्मीदवार मैदान में हैं। पहली बार आधा दर्जन से ज्यादा महिला उम्मीदवारों की मौजूदगी वाली लोकसभा में संभवत: यह भी पहली बार होगा कि तीन प्रत्याशियों के आपस में सीधा कनेक्शन नजर आ रहा है। कांग्रेस-भाजपा और निर्दलीय उम्मीदवारों की कहानी एक-दूसरे से जुड़ी हुई बताई जा रही है। तीनों के साथ जुड़े हालात ने मतदाताओं को प्रभावित करने के अलग-अलग कारण पैदा कर दिए हैं।
राजधानी भोपाल की लोकसभा का चुनाव सिर्फ मप्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके ताल्लुक देश की राजधानी तक से जुड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। इस एक चुनाव से जहां भाजपा का केन्द्रीय संगठन पूरे देश के चुनाव को प्रभावित करने की मंशा रखता है, वहीं इस चुनाव से कांग्रेस के कद्दावर नेता का भविष्य भी जुड़ा हुआ है। इस चुनाव की हारजीत ही दोनों पार्टियों के लिए दशा और दिशा निर्धारित करने वाली साबित हो सकती है। इस चुनावी कोण में तीसरे कोण की मौजूदगी को लेकर फिलहाल इस बात को लेकर संशय बना हुआ है कि इस आमद का फायदा या नुकसान किसको होने वाला है।
त्रिकोण के आपसी रिश्ते
कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह को इस बात के लिए दोषी करार दिया जा रहा है कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में साध्वी प्रज्ञा को आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी हत्याकांड मामले में जेल में अमानवीय प्रताडऩाएं दी गई हैं। जेल में प्रज्ञा की बीमारी से लेकर उनके महिला होने तक का लिहाज नहीं रखा गया। प्रज्ञा की इसी प्रताडऩा को आधार बनाकर मानवीय सिम्पैथी लूटने की मंशा के साथ भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को दिग्विजय सिंह के सामने प्रत्याशी के रूप में मैदान दिया है। बताया जा रहा है कि संघ की नाराजगी को साथ रखते हुए भाजपा ने प्रज्ञा पर महज इसलिए दाव खेला है कि इस एक सीट के जरिेये वह पूरे देश में हिन्दुत्व कार्ड खेलना चाहती है। दिग्विजय और प्रज्ञा के अलावा एक निर्दलीय प्रत्याशी रियाज उद्दीन देशमुख यहां अपनी मौजूदगी इस लिहाज से बनाए हुए हैं कि उनके साथ जो हुआ वह प्रताडऩा भी प्रज्ञा से भी बढ़कर है। उनका कहना है कि प्रज्ञा को जिस आरोप में जेल जाना पड़ा, वह बम बलास्ट और हत्याकांड तो हुआ था, लेकिन उन्हें जिस बात की सजा दी गई है, वह मामला तो पूरी तरह कागजी और ख्याली है, ऐसा कोई मामला हुआ ही नहीं और उन्हें सजा का हकदार बना दिया गया। जिसके चलते न सिर्फ उनकी बदनामी हुई, नौकरी खराब हुई, बल्कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले फायदे भी उनके हाथों से जाते रहे।
अपवाद तीनों के साथ जुड़े
भोपाल में मौजूद कुल 30 प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा चर्चा में भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा सिंह, कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह और निर्दलीय उम्मीदवार रियाज उद्दीन देशमुख हैं। इन तीनों को अपनी जीत पर भरोसा है लेकिन तीनों के साथ अलग-अलग अपवाद जुड़े हुए हैं। जहां पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मुस्लिम मतदाताओं से उम्मीदें हैं, वहीं उनके साथ सिमी प्रतिबंध से लेकर राजधानी में राम मंदिर निर्माण के लिए वक्फ की जगह अलॉट करने के वादे को लेकर नाराजगी है। उनकी संघ पृष्ठभूमि को लेकर भी मुस्लिम समाज में नाराजगी कम नहीं है। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में कर्मचारियों की हकतल्फी भी उनके लिए नुकसान का कारण बन सकती है। इधर भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर की घोर हिन्दूवादी छवि और मुस्लिम समाज से घृणा तक की हद तक दूरी बनाए रखने की बात, उनके द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस की स्वीकारोक्ति और मुस्लिम मतदाताओं से पूरी तरह परहेज करने के मामले उनके लिए इस चुनाव परेशानी का सबब बन सकते हैं। कारण यह है कि राजधानी में सबसे बड़ा वोट बैंक मुस्लिमों का ही है। इसके अलावा उनके लिए सुनील जोशी हत्याकांड ब्राह्मणों को नाराज करने वाला और कायस्थ वोटों की दूरी आलोक संजर का टिकट कटने से बन सकती है। तीसरे कोण के रूप में मौजूद रियाज उद्दीन देशमुख का पर्दे से नदारद रहना और सिर्फ सोशल मीडिया के जरिये चुनाव लडऩा उनके लिए नुकसान का कारण बनेगा। अपने बयानों में साध्वी प्रज्ञा को हेमंत करकरे मामले में, दिग्विजय सिंह को खुद के साथ कांग्रेस सरकार में हुए अन्याय को लेकर और मुस्लिम अधिकारियों, नेताओं, राष्ट्रपति और राज्यपाल से किसी तरह सहयोग न मिलने के चलते मुस्लिम समाज को कटघरे में खड़े करने को लेकर वे मुस्लिम मतों से भी दूर हो रहे हैं, जिनके भरोसे वे राजधानी भोपाल से चुनाव लडऩे के लिए आए हैं।