भोपाल। प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीट के लिए फिलहाल न भाजपा ने अपने प्रत्या्िरशयों के नामों का ऐलान किया है और न ही कांग्रेस ने अपने पत्ते उजागर किए हैं। कई को अपनी लॉटरी लगने की उम्मीद बंधी हुई है तो कुछ को अंदरुनी तौर पर इस बात का सिग्रल मिल चुका है कि उनका टिकट पक्के तौर पर फायनल हो रहा है। नाम ऐलान से पहले कुछ अपनी दावेदारी पर तो कुछ टिकट मिलने के आश्वासन पर अपने क्षेत्रों में सक्रिय हो चुके हैं। तैयारियों के इन दौर पर हर रोज एक प्रत्याशी द्वारा करीब 10 से 20 लाख रुपए तक खर्च किया जा रहा है।
कांग्रेस ने अपने अधिकृत प्रत्याशियों में से कुछ नाम तय कर लिए हैं, लेकिन इनका अधिकृत रूप से ऐलान नहीं किया है। जबकि भाजपा ने भी नामों पर गौर-ओ-फिक्र कर सूची को अंतिम रूप दे दिया है लेकिन इसके ऐलान के लिए होली के बाद का शुभ मुहूर्त उसने तय किया है। सूत्रों का कहना है कि दोनों ही पार्टियों के कुछ बड़े नेताओं के नाम पर लगभग सहमति बन चुकी है और इनका चुनाव लडऩा तय है, जबकि कई सीटों पर एक से अधिक नामों की मशक्कत को दूर करने के लिए फैसला पार्टी आलाकमान के पाले में डाल दिया गया है। इधर नाम तय होने का आश्वासन रखने वालों ने अपनी तैयारियों को अंजाम देना शुरू कर दिया है। इधर टिकट दावेदारी में जुटे नेताओं ने भी खुद को और अपने जनाधार को साबित करने के लिए कार्यक्रमों की बौछार कर दी है। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए प्रत्येक प्रत्याशी द्वारा 10 से 20 लाख रुपए प्रतिदिन खर्च किया जा रहा है।
कोई मौका छूटने न पाए
चुनावी माहौल में आने वाले चुनावों और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों को भाजपा-कांग्रेस ने अपने दावे को पुख्ता करने का साधन बना लिया है। इसके लिए उनके समर्थकों द्वारा सियासी नाम जोड़े बिना आयोजन किए जा रहे हैं। इनमें भगोरिया से लेकर होली-रंगपंचमी पर्व तक के लिए अलग-अलग कार्यक्रम शामिल हैं। इन कार्यक्रमों में तयशुदा नाम वाले भाजपा-कांग्रेस के नेताओं से लेकर संभावित प्रत्याशी तक बड़े लवाजमे के साथ पहुंच रहे हैं और बातों ही बातों में कार्यकर्ताओं का समर्थन और मतदाताओं का आशीर्वाद मांगने से नहीं चूक रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि जहां कांग्रेस ने आचार संहिता लागू होने से पहले किसान कर्ज माफी योजना को अपना हथियार बनाया था, वहीं आचार संहिता के दौरान बूथ स्तर मैनेजमेंट कार्यक्रमों के जरिये कार्यकर्ताओं और जनता के बीच पहुंचा जा रहा है। इधर भाजपा ने भी आरएसएस और सहयोगी दलों के माध्यम से कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार कर लोगों के घर-घर तक पहुंचने के आसान रास्ते बना लिए हैं। चुनाव आयोग की नजर में आने वाले और प्रत्याशी खर्च में जुडऩे जैसे साधनों का इस्तेमाल किए बिना यह काम किए जा रहे हैं।
पंगत से लेकर सभा और रैलियां तक
विधानसभा चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह द्वारा अपनाए गए पंगत संग संगत के सूत्र को कांग्रेस ने लोगों के करीब पहुंचने का माध्यम बनाया है। पिछले एक माह से प्रदेशभर की लोकसभा सीटों पर आयोजित हो रहे बूथ कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान स्थानीय उम्मीदवारों और उनके समर्थकों द्वारा पंगत के इंतेजाम किए जा रहे हैं। हर आयोजन में शामिल होने वाले दो से ढ़ाई हजार लोगों के भोजन के लिए इंतजाम किए जा रहे हैं। पार्टी का मानना है कि कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के करीब पहुंचने और कार्यक्रम में बहुसंख्या जुटाने के लिए यह पैंतरा नायाब और अचूक है। इधर रैलियों, आमसभाओं और कमरा बैठकों के दौरान भी भोजन की व्यवस्था कर इसपर बड़ी राशि खर्च की जा रही है।
प्रत्याशी घोषित होने तक ही करोड़ों खर्च
प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर हरदिन आयोजित होने वाले कार्यक्रम पर रोजाना 5-6 करोड़ रुपए खर्च हो रहा है। पिछले एक महीने से चल रहे इन कार्यक्रमों पर अब तक डेढ़ सौ करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो जाने का अनुमान है। उम्मीद की जा रही है कि प्रत्याशी ऐलान होने तक यह आंकड़ा दोगुना हो चुका होगा। जबकि चुनाव के दौरान किए जाने वाले खर्च फिलहाल बाकी हैं।
कहां हो रहा खर्च
सूत्रों का कहना है कि लोकसभा क्षेत्रों में पार्टी मुख्यालय से भेजी जा रही एक्सपर्ट टीम के आवागमन के लिए वाहनों, उनके रात्रि विश्राम, खाने-नाश्ते आदि पर बड़ा खर्च हो रहा है। इसके अलावा कार्यक्रमों के दौरान पंगत के लिए तैयार किए जाने वाले भोजन, रैलियों, सभाओं और अन्य मद पर भी बड़ी राशि लगाई जा रही है। इसके अलावा एक्पर्ट टीम को पार्टी या प्रत्याशी की तरफ से एक निश्चित मानदेय या सम्मान राशि भी देकर उपकृत किया जा रहा है, जिसपर भी हरदिन बड़ी राशि खर्च हो रही है।
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