सेना को लंबे समय से हर मौसम और परिस्थिति में इस्तेमाल हो सकने वाली असॉल्ट रायफल की तलाश थी।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को यूपी के अमेठी में स्थित कोरवा ऑर्डिनेंस फैक्टरी में AK सीरीज की सबसे अत्याधुनिक राइफल एके-203 के निर्माण की योजना का औपचारिक उद्घाटन किया। इन राइफल्स के निर्माण के लिए भारत सरकार ने रूस की एक कंपनी के साथ करार किया है। ज्वाइंट वेंचर के रूप में अमेठी में करीब 7.50 लाख असॉल्ट राइफलों का निर्माण करेगी। इसके साथ ही भारतीय सुरक्षा बलों को सबसे विश्वसनीय रायफल की खोज खत्म हो जाएगी।
आने वाले वक्त में यह वर्तमान में इस्तेमाल हो रही एके-47 और इंसास राइफल की जगह लेंगी। भारतीय सेना के पास इस समय इंसास (इंडिया स्मॉल आर्म्स सिस्टम) राइफलें हैं। इन्हें आधुनिक और उन्नत तकनीक वाली राइफल से बदलना जरूरी हो गया था क्योंकि कई बार इन्हें चलाने में मुश्किल होती थी। इंसास रायफल के साथ कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं, जिनमें बंदूक के जाम होने, तीन चार बुलेट एक साथ चलाने पर उसके ऑटोमैटिक मोड में चले जाने, संघर्ष के दौरान सैनिक की आंख में ऑयल चले जाने जैसी परेशानियां सामने आती हैं।
करगिल युद्ध में भी आई थी परेशानी
साल 1999 में हुए करगिल युद्ध के दौरान सैनिकों ने लड़ाई के दौरान इंसास रायफल के जाम होने या फ्रीजिंग टेम्पेरेचर में मैग्जीन के टूट जाने की शिकायत की थी, जिससे कठिन समय में दुश्मनों से लड़ने में उन्हें परेशानी हुई थी। जम्मू-कश्मीर में आतंकी एके47 जैसे घातक हथियारों का इस्तेमाल कर सुरक्षाबलों को भारी क्षति पहुंचाते हैं, जो मुख्यरूप से जान लेने के मकसद से तैयार की गई हैं।
इंसास रायफल की प्रभावी रेंज 400 मीटर है और इसकी मैग्जीन में 20 राउंड गोलियां लोड की जा सकती हैं। इसकी मैग्जीन अर्धपारदर्शी है, लेकिन जमीन पर गिरने पर इसके टूटने की आशंका रहती है। इंसास रायफल भारी और लंबी है, जिससे इसे लेकर चलने में परेशानी होती है।
घायल करने के लिए बनी थीं इंसास
इंसास रायफल की खामियों से परेशान होकर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगे सैनिकों को दुनिया की सबसे भरोसेमंद मानी जाने वाली एके 47 या आयातित बंदूकें दी गईं। यहां तक कि आतंकवाद प्रभावित इलाकों में तैनात सीआरपीएफ के जवानों को एके47 रायफलें दी गई हैं।