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सियासत गरमाई! ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर शिवराज का ‘खुला समर्थन’, तो विपक्ष क्यों है ‘खिलाफ’? जानें पूरा सियासी गणित!

Last Updated: May 24, 2025, 4:41 PM IST

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर शिवराज का ‘खुला समर्थन’, तो विपक्ष क्यों है ‘खिलाफ’? जानें पूरा सियासी गणित!

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का खुलकर समर्थन किया, जबकि कांग्रेस समेत क्षेत्रीय दल इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं। जानें दोनों पक्षों के तर्क।

हाइलाइट्स

  • शिवराज सिंह चौहान ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का किया समर्थन।
  • बार-बार चुनाव से कामकाज में बाधा और भारी खर्च का दिया तर्क।
  • कांग्रेस ने संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता पर खतरे की आशंका जताई।
  • क्षेत्रीय दलों ने इसे सत्ता के केंद्रीकरण का कदम बताया।
  • भाजपा इसे मुख्य चुनावी एजेंडा बनाने की तैयारी में।

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार को खुलकर समर्थन दिया है। उनका तर्क है कि बार-बार चुनाव होने से न केवल सरकार के कामकाज में बाधा आती है, बल्कि इसका खर्च भी आसमान छू रहा है। उन्होंने बताया कि 1952 में चुनावों पर ₹9,000 करोड़ खर्च हुए थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा ₹1 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा पहुंच गया। चौहान के मुताबिक अगर राज्यों के विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकाय चुनाव भी जोड़ लिए जाएं, तो यह खर्च ₹7 लाख करोड़ रुपये तक जा सकता है।

चौहान ने मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हुए बताया कि सितंबर 2023 से लेकर जून 2024 तक आचार संहिता लागू रहने के कारण कोई बड़ा काम नहीं हो सका। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अधिकारियों का ध्यान भी चुनावी ड्यूटी में लगा रहता है जिससे योजनाओं की रफ्तार धीमी हो जाती है। ऐसे में एक बार में सभी चुनाव कराना ही बेहतर विकल्प है।

कांग्रेस की आशंकाएं: लोकतंत्र पर खतरा?

कांग्रेस पार्टी इस विचार का खुलकर विरोध करती रही है। पार्टी का मानना है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में संघीय ढांचे के खिलाफ है। कांग्रेस का तर्क है कि इससे राज्यों की स्वायत्तता पर चोट पहुंचेगी और केंद्र सरकार को अतिरिक्त राजनीतिक लाभ मिल सकता है। पार्टी यह भी कहती है कि हर राज्य की राजनीतिक परिस्थितियाँ अलग होती हैं, ऐसे में एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है।

क्षेत्रीय दलों की राय: सत्ता के केंद्रीकरण का खतरा:

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), वाम मोर्चा, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और अन्य क्षेत्रीय दल भी इस प्रस्ताव पर सवाल उठा चुके हैं। टीएमसी की ओर से कहा गया है कि यह प्रस्ताव भारतीय लोकतंत्र की विविधता को समाप्त करने की दिशा में एक कदम है। वाम मोर्चा इसे चुनावी ‘केंद्रवाद’ करार देता है, जिससे क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएंगे।

राजद के नेता भी मानते हैं कि यह एक राजनीतिक चाल है जिसका उद्देश्य विपक्षी दलों को कमजोर करना और केंद्र की सत्ता को मजबूत करना है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने भी कहा है कि इससे राज्यों की राजनीति दब जाएगी और केवल राष्ट्रीय मुद्दे ही चुनाव में हावी रहेंगे, जिससे स्थानीय जनता की समस्याएं अनसुनी रह जाएंगी।

भाजपा की रणनीति और सहमति की राह:

भाजपा के वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान का बयान इस दिशा में पार्टी की रणनीतिक सोच को दर्शाता है। भाजपा लगातार इस विषय को उठाती रही है और अब इसे एक प्रमुख चुनावी एजेंडा बनाने की तैयारी में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई बार इस विचार का समर्थन किया है।

शिवराज सिंह चौहान का बयान भाजपा के भीतर इस मुद्दे को लेकर एकता और दृढ़ता को दर्शाता है, जबकि विपक्षी दल इसे लोकतंत्र और संघीय ढांचे के लिए खतरा मानते हैं। जहां सरकार इसे खर्च और प्रशासनिक कुशलता के नजरिए से देख रही है, वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक संतुलन को बिगाड़ने वाला कदम मानता है। ऐसे में, इस मुद्दे पर राजनीतिक सहमति बन पाना फिलहाल मुश्किल नजर आ रहा है।

Location: नई दिल्ली

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