Breaking news Latest News National News Technology

रणक्षेत्र में बड़ा बदलाव! भारतीय वायुसेना का नया ‘मोर्चा’: ‘नियर स्पेस’ में बढ़ी गतिविधियां, चीन-पाक की ‘उड़ी नींद’!

Last Updated: May 24, 2025, 14:26 IST

भारतीय वायुसेना अब धरती से 20 से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाले ‘नियर स्पेस’ को बना रही है अपना नया रणनीतिक रणक्षेत्र। दुश्मन की हर चाल पर रखी जाएगी पैनी नजर।

हाइलाइट्स

  • भारतीय वायुसेना (IAF) ने ‘नियर स्पेस’ को बनाया नया रणक्षेत्र।
  • ‘नियर स्पेस’ धरती से 20-100 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
  • HAPS और स्ट्रेटोस्फेरिक बैलून्स से 24×7 निगरानी संभव।
  • चीन और पाकिस्तान की बढ़ती चिंता, हाइपरसोनिक हथियारों का विकास।
  • सोलर ड्रोन, बैलून और AI-बेस्ड नैविगेशन सिस्टम की तैनाती।

नई दिल्ली: आज के आधुनिक युद्ध के युग में लड़ाई न तो केवल जमीन पर लड़ी जाती है और न ही सिर्फ समुद्र या आसमान में। अब जंग का एक नया मैदान तैयार हो चुका है — ‘नियर स्पेस’ — यानी धरती से 20 से 100 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच का इलाका। भारतीय वायुसेना (IAF) ने इस रणनीतिक क्षेत्र को अब अपने नियंत्रण में लेना शुरू कर दिया है। नतीजा? दुश्मन चाहे चीन हो या पाकिस्तान, अब उसे सिर्फ सीमा पर नहीं, आसमान से भी चौकस निगाहों का सामना करना पड़ेगा और वो भी एक ऐसे क्षेत्र से जो अब तक ‘अनदेखा’ और ‘अछूता’ था।

दुश्मन की नींद उड़ाने वाला नया मैदान:

यह इलाका न तो पूरी तरह वायुमंडल का हिस्सा है और न ही अंतरिक्ष की सैटेलाइट कक्षा में आता है। लेकिन यहीं से अब निगरानी, संचार और मिसाइल चेतावनी जैसे अहम काम होने जा रहे हैं। पारंपरिक विमानों से ऊपर और सैटेलाइट्स से नीचे रहने वाले हाइ-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म्स जैसे HAPS (हाई-एल्टीट्यूड स्यूडो सैटेलाइट्स) और स्ट्रेटोस्फेरिक बैलून्स अब इस क्षेत्र को भारतीय सुरक्षा की नई ‘चौकी’ में तब्दील कर रहे हैं।

इन प्लेटफॉर्म्स की खासियत है कि ये हफ्तों तक एक जगह टिके रह सकते हैं, वो भी बिना रीफ्यूलिंग के, क्योंकि ये सौर ऊर्जा से चलते हैं। ऐसे में लद्दाख, अरुणाचल, सियाचिल और हिंद महासागर जैसे संवेदनशील इलाकों में चीन की हर चाल पर चौबीसों घंटे निगरानी अब सिर्फ सपना नहीं, हकीकत बन रही है।

हाइपरसोनिक हथियारों से बढ़ी चीन-पाक की चिंता:

नियर स्पेस का इस्तेमाल केवल निगरानी तक सीमित नहीं है। युद्ध के समय सैटेलाइट या साइबर अटैक से अगर संचार बाधित होता है, तो यही हाइ-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सेना के तीनों अंगों को जोड़ने वाले ‘संचार पुल’ का काम करेंगे। इसके अलावा, जब बैलिस्टिक मिसाइलें अपने मिड-कोर्स फेज में होती हैं, तो यही ‘नियर स्पेस’ उन्हें ट्रैक करने का सबसे उपयुक्त स्थान बन जाता है। DRDO और वायुसेना मिलकर ऐसे एडवांस सेंसर बना रही हैं जो तुरंत खतरे का पता लगाकर जवाबी कार्रवाई संभव बना सकें।

भारत अब हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी पर तेजी से काम कर रहा है। ये ऐसी मिसाइलें होती हैं, जो मैक-5 से ज्यादा रफ्तार से चलती हैं। ये हथियार ‘नियर स्पेस’ में ही ऑपरेट करते हैं और दुश्मन की पारंपरिक सुरक्षा प्रणालियों को पार कर सकते हैं। ISRO के RLV-TD और DRDO के HSTDV जैसे प्रोजेक्ट्स इसी क्षेत्र से जुड़े हैं और भारतीय वायुसेना इनमें न केवल सुरक्षा बल्कि ट्रैकिंग और रिकवरी की बड़ी भूमिका निभा रही है।

सोलर ड्रोन, बैलून, सेंसर की तैनाती:

भारतीय वायुसेना अब इसरो, डीआरडीओ के साथ-साथ आईआईटी और निजी कंपनियों के साथ मिलकर सोलर ड्रोन, बैलून, सेंसर और AI-बेस्ड नैविगेशन सिस्टम विकसित कर रही है। iDEX जैसे प्लेटफॉर्म पर कई भारतीय स्टार्टअप अब रक्षा से जुड़े नवाचारों में जुटे हैं।

इस ऊंचाई पर तापमान बहुत कम, हवा हलकी और रेडिएशन तेज होता है, जिससे उपकरणों को चलाना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, अभी तक इस स्पेस के लिए स्पष्ट वैश्विक और राष्ट्रीय नियम नहीं हैं। वायुसेना, थलसेना, नौसेना और अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच तालमेल और SOP (मानक संचालन प्रक्रिया) की ज़रूरत भी बढ़ रही है।

भारत ने साफ कर दिया है कि अब रक्षा केवल जमीन, समुद्र या वायु तक सीमित नहीं रहेगी। ‘नियर स्पेस’ में बिठाया गया यह ‘बाज़’ अब हर हरकत पर नज़र रखेगा — चाहे वो एलएसी पर चीन की हो या सीमा पार से पाकिस्तान की। नया रणक्षेत्र तैयार है, और भारत पहले से ज्यादा सतर्क और ताकतवर होकर उसमें उतर चुका है।

Please follow and like us:
Pin Share

Leave a Reply