छत्तीसगढ़ में पिछले 10 दिन से पत्रकार धरना, सुंदरकांड, यज्ञ और गंगाजल यात्रा जैसे क्रियाकलापों में जुटे हैं. पत्रकारों की मानें तो ऐसा करने के पीछे भाजपा का गुंडागर्दी और अड़ियल रवैया है. दरअसल उन भाजपा कार्यकर्ताओं को निलंबित करने की मांग को लेकर पत्रकार अड़े हैं जिन पर दो स्थानीय पत्रकारों के साथ मारपीट करने का आरोप है. उधर भाजपा के राज्य स्तरीय नेतृत्व का कहना है कि हम कथित तौर पर दोषी कार्यकर्ताओं को नोटिस भेज सकते हैं लेकिन उन्हें निलंबित करना हमारे हाथ में नहीं.
राज्य में पत्रकारों और भाजपा के नेताओं के बीच ठनाठनी का दौर जारी है. पहले 24 जनवरी को राज्य में हुई भाजपा की हार को लेकर चर्चा करने पर प्रदेश प्रभारी अनिल जैन भड़क गए. बाद में राज्य में नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक ने बातचीत कर मसले को संभाला. अब ताजा मामला 2 फरवरी को राज्य के पत्रकार सुमन पांडे का है. इनका आरोप है कि रायपुर के भाजपा कार्यालय में कार्यकर्ताओं के बीच हो रहे झगड़े का वीडियो बनाते समय इनके साथ मारपीट की गई.
रायपुर प्रेस क्लब के वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल ठाकुर ने बताया कि दरअसल वहां पर विधानसभा स्तर की समीक्षा बैठक चल रही थी. सभी पत्रकारों को पार्टी की मीडिया सेल ने खुद मैसेज कर बुलाया था. कथित तौर पर मारपीट का शिकार पत्रकार सुमन पांडे भी वहां पहुचे थे.सभी पत्रकारों की तरह वे न्यूज कवर कर अपने दफ्तर पहुंचे ही थे कि उन्हें फोन आया कि भाजपा कार्यालय में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया है. उनका दफ्तर कार्यालय के करीब है.वे मौके पर पहुंचे और वीडियो बनाने लगे. लेकिन वहां मौजूद कुछ कार्यकर्ताओं ने एतराज जताया. जिला अध्यक्ष राजीव अग्रवाल और उनके साथ कुछ कार्यकर्ताओं ने उनसे वीडियो डिलिट करने को कहा. सुमन पांडे ने जब उनसे कहा कि वे पत्रकार हैं. उनका काम खबरों को कवर करना है.वे अपना काम कर रहे हैं. लेकिन तभी सुमन पांडे के साथ वहां मौजूद उनके साथी पत्रकार पर कार्यकर्ताओं ने हमाल बोल दिया. सुमन पांडे ने पिटते साथी पत्रकार को बचाने की गरज से वीडियो डिलिट कर दिया. बावजूद इसके राजीव अग्रवाल तो वहां से चले गए लेकिन बाकी बचे कुछ कार्यकर्ताओं ने उनकी पिटाई शुरू कर दी. हालांकि फिर कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं ने ही उन दोनों को बचाकर बाहर निकाला.जबकि नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक की मानें तो यह पूरी घटना वैसी नहीं है जैसा कि पत्रकार बता रहे हैं. दरअसल मौके पर मौजूद कार्यकर्ताओं ने उन तक घटना का जो वर्जन पहुंचाया है वह कुछ इस तरह है, जिला स्तर की समीक्षा बैठक चल रही थी, कथित तौर पर पीड़ित पत्रकार बैठक में पहुंचे. वे वहां पार्टी की समीक्षा बैठक में शामिल हो गए. उनसे एक कार्यकर्ता ने उनकी पहचान पूछी तो पहले खुद को कांग्रेस का कार्यकर्ता बताया फिर पत्रकार. उनसे भाजपा कार्यकर्ता ने उनका पहचान पत्र मांगा तो पत्रकार ने देने से मना कर दिया. इस पर कार्यकर्ता नाराज हो गए और वीडियो डिलिट करने को कहा, मना करने पर बात बढ़ गई.कार्रवाई के सवाल पर कौशिक का कहना है कि कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई किए जाने के आश्वासन के बाद भी पत्रकारों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा है. हमने कथित तौर पर दोषी कार्यकर्ताओं को नोटिस भेजने का भरोसा भी दिलाया है. पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के आलाकमान नेताओं तक बात पहुंचाने की बात भी कही है. लेकिन पत्रकारों की मांग है कि कार्यकर्ताओं को फौरन निष्कासित किया जाए. कौशिक के मुताबिक कार्यकर्ताओं को निष्कासित करने का फैसला वे नहीं ले सकते. दूसरी तरफ प्रफुल्ल ठाकुर का कहना है कि बात केवल एक पत्रकार से कार्यालय में हुई मारपीट से भी आगे हैं. दरअसल जब भाजपा नेतृत्व धरने पर बैठे पत्रकारों की इस मांग पर भी राजी नहीं हुआ कि दोषी कार्यकर्ता माफी मांग लें तो हमने जिला अध्यक्ष राजीव अग्रवाल, विजय व्यास, डीन डोंगरे, उत्कर्, त्रिवेदी के खिलाफ एफआइआर की. काफी दबाव के बाद गिरफ्तारी हो सकी. लेकिन उनकी रिहाई भाजपा कार्यकर्ताओं ने फूल माले के साथ करवाई. इतना ही नहीं धरने पर बैठे पत्रकारों को मारने के लिए करीब 100 कार्यकर्ता रॉड, डंडे के साथ वहां पहुंचे. वह तो अच्छा है कि पत्रकारों की संख्या उनसे कहीं ज्यादा थी. इसलिए हम बच गए. प्रफुल्ल का कहना है कि अगर वे नोटिस भेजने को तैयार थे तो क्या घटना के दस दिन बाद भी उन्होंने नोटिस भेजा है? राज्य पत्रकार संघ का कहना है कि अगर इस घटना को यूं ही जाने दिया तो आगे हर पार्टी पत्रकारों के साथ बदसलूकी करेगी. यह सम्मान की लड़ाई है जब तक दोषियों को पार्टी से निष्कासित नहीं किया जाता तब तक हम आंदोलन करते रहेंगे. हालांकि प्रफुल्ल ठाकुर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस की पत्रकारों के साथ की वादाखिलाफी का भी जिक्र करते हैं. दरअसल कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता पर आई तो फौरन पत्रकार सुरक्षा कानून बनाएगी. लेकिन दो महीने बीतने के बाद कानून बनाने के लिए कमेटी का गठन तक नहीं हो पाया है. वे कहते हैं, अगर पत्रकारों की सुरक्षा का कानून राज्य में होता तो पत्रकार अपना कामकाज छोड़कर आंदोलन करने के लिए मजबूर नहीं होते.