प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल 75 साल से अधिक उम्र वाले नेताओं को लोकसभा चुनाव के टिकट नहीं देने का नियम सख्ती से लागू किया है, बल्कि परिवारवाद को भी खत्म करने का रास्ता साफ कर दिया है.
यदि लालकृष्ण आडवाणी, एम.एम. जोशी, सुमित्रा महाजन, करिया मुंडा समेत पार्टी के 16 वरिष्ठ पार्टी नेताओं को टिकट से वंचित कर दिया गया, तो परिवार के किसी भी एक सदस्य या एक ही परिवार के दो सदस्यों को टिकट नहीं दिया जाएगा. वीरेंद्र सिंह, जगदीश मुखी समेत भाजपा के कई वरिष्ठ नेता मोदी के इस नये नियम के शिकार हो गए हैं.
पीएम मोदी ने भाजपा के ‘गांधी’मेनका और वरुण को भी स्पष्ट कर दिया था कि उनमें से केवल एक को ही टिकट मिलेगा.
दोनों लोकसभा के सांसद है और मेनका गांधी मोदी सरकार में मंत्री है. वैसे, यह साफ है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और भूतल परिवहन और जहाजरानी मंत्री नितीन गडकरी ने इस मामले में उन्हें राहत देने का अनुरोध किया है.
इस नियम को नये मामलों में लागू किया जा सकता है. मोदी ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई पिता या माता राजनीति में सक्रिय है तो नए परिवार या परिजनों को टिकट नही मिलेगा.
असम के राज्यपाल जगदीश मुखी प्रधानमंत्री के इस नए नियम से प्रभावित हुए है. भाजपा की दिल्ली इकाई के वरिष्ठ नेता मुखी अपने बेटे को दिल्ली से लोकसभा चुनाव के लिए टिकट दिलाना चाहते थे. इस पर उन्हें राज्यपाल पद से इस्तीफा देने और राजनीतिक जगत से सन्यास लेने की घोषणा करने को कहा गया.
इसी प्रकार इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह भी बेहद निराश है क्योंकि उनके बेटे को चुनावी रणभूमि में प्रवेश से इनकार कर दिया गया, उनके आईएएस अधिकारी पुत्र बिजेंद्र सिंह हरियाणा के रोहतक या हिसार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा में शामिल होना चाहते थे.
भाजपा इस मूड में नहीं थी कि वरिष्ठ नेता बीरेंद्र सिंह अपने बेटे के लिए मोर्चा छोड़ें. वह भी तब जबकि वह 73 साल के है और उनकी पत्नी हरियाणा मे विधायक हैं. इसी वजह से बीरेंद्र सिंह के बेटे को थोड़ा इंतजार करना होगा.