क्या चिराग पासवान लड़ेंगे विधानसभा चुनाव? एनडीए में सियासी समीकरण बदलने की तैयारी
मुख्य बिंदु:
- चिराग पासवान ने दिए बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत
- क्या यह एनडीए में सीट बंटवारे पर दबाव की रणनीति है?
- ‘बिहार फर्स्ट’ सोच से राजनीतिक स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिश
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने हाल ही में 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का संकेत देकर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। हालांकि उन्होंने यह निर्णय पार्टी पर छोड़ दिया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम पूरी तरह रणनीतिक हो सकता है।
क्या यह पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने का तरीका है, या फिर एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव बनाने का प्रयास?
क्या यह रणनीति है या दबाव की राजनीति?
चिराग पासवान की ‘वन मैन आर्मी’ की छवि के बीच, यह बयान उनके निर्णय लेने के पुराने तरीके से अलग प्रतीत होता है। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है — जिसमें वे एक ओर पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हैं, तो दूसरी ओर एनडीए में अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, एनडीए की ओर से लोजपा (रामविलास) को 20–22 सीटें ऑफर की गई हैं, जबकि चिराग कम से कम 40 सीटों की मांग कर रहे हैं। ऐसे में उनके चुनाव लड़ने की बात को एक प्रेशर टैक्टिक के रूप में देखा जा रहा है।
‘बिहार फर्स्ट’ से व्यापक जनाधार की कोशिश
“अगर पार्टी चाहती है, तो मैं जरूर चुनाव लड़ूंगा। यह कोई बहाना नहीं है, पार्टी इस पर गंभीरता से विचार कर रही है।”
यह बयान चिराग ने वैशाली के महुआ में दिया। उनकी पार्टी के सांसद अरुण भारती ने भी दोहराया कि चिराग को विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया है, क्योंकि बिहार को युवा नेतृत्व की आवश्यकता है।
दिलचस्प बात यह है कि चिराग सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं — जो उनकी दलित नेता की छवि को बहुजन नेता में बदलने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।
क्या तेजस्वी से नज़दीकी है संकेत?
हाल की तेजस्वी यादव से मुलाकात और राजद की सराहना भी संकेत देती है कि चिराग एनडीए को यह बताना चाहते हैं कि उनके पास विकल्प खुले हैं।
क्या लक्ष्य मुख्यमंत्री पद है?
चिराग ने भले ही साफ किया हो कि 2025 का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन उनकी पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि वे भविष्य में मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री पद के लिए खुद को स्थापित करना चाहते हैं।
“चुनाव सिर्फ विधायक बनने के लिए नहीं है। लक्ष्य है कि चिराग बिहार की राजनीति में केंद्रबिंदु बनें।” – पार्टी कार्यकर्ता
निष्कर्ष: चालाकी से चली गई चाल
चिराग पासवान का यह बयान चाहे जितना विनम्र लगे, हकीकत में यह एनडीए के भीतर सीट बंटवारे और रणनीतिक दबाव की एक सटीक चाल हो सकती है। इससे वे न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित कर रहे हैं, बल्कि राजनीतिक शक्ति संतुलन में भी खुद को स्थापित कर रहे हैं।
अब सवाल यह है: क्या यह दांव चिराग को किंगमेकर बनाएगा, या सिर्फ एनडीए में एक ऊँची आवाज़ भर साबित होगा?