नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास के नजदीक स्थित एक महत्वपूर्ण मार्ग, ‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क मार्ग’ का नाम बदलने की मांग जोर पकड़ रही है। व्यापारियों के शीर्ष संगठन चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (CTI) ने इस सड़क का नाम बदलकर भारत की सैन्य शक्ति के प्रतीक ‘ब्रह्मोस मार्ग’ रखने का पुरजोर आग्रह किया है। CTI का कहना है कि यह कदम न केवल भारत की सैन्य ताकत को दर्शाएगा, बल्कि पाकिस्तान के करीबी दोस्त तुर्की को भी एक कड़ा और स्पष्ट संदेश देगा।
CTI के चेयरमैन बृजेश गोयल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर इस संबंध में तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास के पास 30 वर्षों से लगे मुस्तफा कमाल अतातुर्क के साइन बोर्ड को तुरंत हटाया जाना चाहिए। गोयल ने तर्क दिया कि यह बिल्कुल भी उचित नहीं है कि देश की राजधानी के इतने प्रमुख और संवेदनशील इलाके में उस देश के संस्थापक का नाम हो, जो लगातार भारत विरोधी रुख अपना रहा है।
कौन थे मुस्तफा कमाल अतातुर्क?
मुस्तफा कमाल अतातुर्क तुर्की के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति थे, जिनके सम्मान में दिल्ली में इस सड़क का नामकरण किया गया था। हालांकि, CTI का मानना है कि अब भारत की बदलती हुई सोच और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के अनुरूप निर्णय लेने का समय आ गया है।
CTI महासचिव विष्णु भार्गव और गुरमीत अरोड़ा ने भी इस मांग का समर्थन करते हुए कहा कि तुर्की अब न केवल पाकिस्तान का समर्थक है, बल्कि भारत विरोधी गतिविधियों में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल रहा है। ऐसे में, भारत की राजधानी के सबसे संवेदनशील और प्रतिष्ठित क्षेत्र में तुर्की के नेता के नाम की कोई पहचान बने रहना पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
तुर्की के खिलाफ देश में उबाल
CTI की यह मांग ऐसे समय पर उठी है, जब देश में सोशल मीडिया पर लगातार ‘#BoycottTurkey’ जैसे ट्रेंड चल रहे हैं। भारत का एक बड़ा वर्ग तुर्की द्वारा पाकिस्तान के खुले समर्थन और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर दिए गए भड़काऊ बयानों से बेहद नाराज है।
बृजेश गोयल ने सुझाव दिया है कि ‘मुस्तफा कमाल अतातुर्क मार्ग’ का नाम बदलकर ‘ब्रह्मोस मार्ग’ रखा जाए। ब्रह्मोस मिसाइल, भारत की सबसे घातक और उच्च तकनीक वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। उनके अनुसार, यह नाम न केवल राष्ट्र की सामरिक शक्ति का प्रदर्शन करेगा, बल्कि राष्ट्रीय गौरव को भी मजबूती प्रदान करेगा। यदि सरकार CTI की इस मांग को स्वीकार करती है, तो यह कदम न केवल प्रतीकात्मक होगा, बल्कि तुर्की को यह स्पष्ट संदेश भी देगा कि भारत अपनी राष्ट्रीय हितों और सम्मान के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा।