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भारत-पाक टेंशन के बीच बिहार की इस हवाईपट्टी की चर्चा क्यों? 1962 के युद्ध की यादें फिर हुईं ताजा!

India Pakistan Tension: भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच बिहार के नेपाल बॉर्डर पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. सीमावर्ती अररिया जिले के जोगबनी चेक पॉइंट पर सशत्र सीमा बल गहन जांच कर रही है. इस बीच फारबिसगंज एयरफील्ड को …और पढ़ें

भारत-पाकिस्तान टेंशन: 1962 के बाद बनी बिहार की इस हवाई पट्टी की चर्चा क्यों?भारत पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति के बीच अररिया जिले के फारबिसगंज एयर फील्ड को डेवलप करने की मांग.

अररिया: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के माहौल में, बिहार के नेपाल सीमा से सटे अररिया जिले में स्थित एक हवाईपट्टी अचानक सुर्खियों में आ गई है। सीमा पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और जोगबनी चेक पॉइंट पर सशस्त्र सीमा बल गहन जांच कर रहा है। लेकिन इस सबके बीच, फारबिसगंज हवाई अड्डे को दोबारा शुरू करने की मांग तेज हो गई है, जिसकी यादें 1962 के भारत-चीन युद्ध से जुड़ी हैं।

दरअसल, सामरिक दृष्टि से यह हवाई अड्डा भारत के पूर्वी क्षेत्र में युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण एयरबेस साबित हो सकता है। जानकार बताते हैं कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत को मिली हार के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में नेपाल की तराई वाले भारतीय क्षेत्र में एक इंडियन एयरफोर्स स्टेशन बनाने का विचार किया गया था। फारबिसगंज की इस हवाई पट्टी को इसके लिए चिन्हित भी किया गया था, लेकिन तकनीकी और राजनीतिक कारणों से इसे पूर्णिया स्थानांतरित कर दिया गया। हालांकि, नेपाल की खुली सीमा की सुरक्षा के लिहाज से फारबिसगंज एयरफील्ड को आज भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

फिर उठी फारबिसगंज एयरपोर्ट को चालू करने की मांग:

यह हवाई अड्डा एक बार फिर चर्चा में तब आया जब हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुपौल के वीरपुर हवाई अड्डे को चालू करने की पहल की। इसके साथ ही, अररिया के फारबिसगंज का अर्धनिर्मित हवाई अड्डा भी सुर्खियों में आ गया। 63 वर्षों से आधे-अधूरे रूप में मौजूद इस हवाई अड्डे को पूरी तरह से विकसित करने की मांग क्षेत्र के लोगों ने फिर से तेज कर दी है। जानकार बताते हैं कि इस सैनिक हवाई पट्टी का निर्माण भागलपुर सेंट्रल जेल के कैदियों से करवाया गया था, और तब से क्षेत्रवासी इसके चालू होने का इंतजार कर रहे हैं।

कभी नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन थी हवाई पट्टी:

गौरतलब है कि समय-समय पर इस हवाई अड्डे को पूर्ण रूप से विकसित करने की मांग उठती रही है। 1989 से पहले यह भूमि भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन थी, लेकिन बाद में इसे एयरपोर्ट अथॉरिटी को हस्तांतरित कर दिया गया। इसके 44 वर्षों बाद, 18 वर्ष पूर्व 22 नवंबर 2006 को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारियों ने इस हवाई पट्टी का सर्वेक्षण भी किया था और इसके नामांतरण की बात कही थी।

153.5 एकड़ में फैली है हवाई पट्टी:

जानकारों के अनुसार, उस समय सर्वेक्षण कर रहे और ट्रैफिक कंट्रोल के प्रबंधक एके द्विवेदी थे। उन्होंने इसकी घेराबंदी कर लीज प्रणाली को खत्म करते हुए इस पर फ्लाइंग क्लब खोलने के संकेत दिए थे, और घेराबंदी का कार्य भी किया जा चुका है। अररिया के फारबिसगंज की यह हवाई पट्टी 153.5 एकड़ जमीन में फैली हुई है, जिसमें 1524 गुना 152 मीटर जमीन टेक ऑफ और लैंडिंग के लिए आवंटित थी। अब यह अर्धनिर्मित हवाई अड्डा क्षेत्रवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।

भारत-पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण माहौल में, इस हवाई पट्टी का सामरिक महत्व बढ़ गया है, और क्षेत्र के लोग इसे जल्द से जल्द चालू करने की उम्मीद कर रहे हैं।

 

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