नई दिल्ली: भारत ने पाकिस्तान को उसकी नापाक हरकतों का करारा जवाब देते हुए PoK (पाक अधिकृत कश्मीर) में जबर्दस्त एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया है। इस ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम दिया गया है, जिसमें भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने सीमा पार 9 आतंकी ठिकानों को धूल चटा दी है। इस साहसिक कार्रवाई में भारत की तीनों सेनाओं – थल सेना, नौसेना और वायुसेना ने मिलकर रणनीति बनाई और एक साथ इस ऑपरेशन को सफल बनाया।
भारतीय सैन्य इतिहास में यह एक दुर्लभ संयोग है कि इस महत्वपूर्ण ऑपरेशन की कमान तीनों सेनाओं के ऐसे अध्यक्षों के हाथों में थी जो न केवल बैचमेट रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) के 1984 बैच के पासआउट भी हैं। यह महज एक इत्तेफाक है या कुछ और, लेकिन आज देश की तीनों सेनाओं की बागडोर NDA के इन तीन जांबाज अफसरों के हाथों में है, जिन्होंने साथ में प्रशिक्षण लिया और आज देश की रक्षा के लिए एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता में इन तीनों सेनाध्यक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिन्होंने एकजुट होकर रणनीति बनाई और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। आइए जानते हैं कौन हैं ये तीनों सेनाध्यक्ष:
भारत की तीन प्रमुख सेनाएं हैं – थल सेना, नौसेना और वायुसेना। इन तीनों सेनाओं के अलग-अलग अध्यक्ष होते हैं, जिन्हें सेनाध्यक्ष कहा जाता है। वर्तमान में लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी थल सेना के सेनाध्यक्ष हैं, एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी नौसेना के सेनाध्यक्ष हैं, और एयर मार्शल अमर प्रीत सिंह वायुसेना की कमान संभाल रहे हैं।
1. लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी (थल सेनाध्यक्ष):
लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने 30 जून 2024 को भारतीय सेना के थल सेनाध्यक्ष का पदभार संभाला। 1 जुलाई 1964 को मध्य प्रदेश के रीवा में जन्मे उपेंद्र द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, रीवा में हुई, जहाँ उन्होंने 1973 में दाखिला लिया और 1981 में पासआउट हुए। इसी दौरान वर्तमान नौसेनाध्यक्ष एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी उनके बैचमेट थे। इसके बाद उपेंद्र द्विवेदी का चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), खडकवासला के लिए हुआ, जहाँ उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ब्लू अवार्ड जीता। उन्हें 15 दिसंबर 1984 को भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून से जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 18वीं बटालियन में कमीशन मिला, जहाँ उन्हें शारीरिक प्रशिक्षण में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। सामरिक अध्ययन और सैन्य विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ-साथ उनके पास एम.फिल.(रक्षा और प्रबंधन अध्ययन) की डिग्री भी है। अपने 39 वर्षों के शानदार करियर में, लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी जम्मू-कश्मीर, LAC और उत्तर पूर्व में आतंकवाद विरोधी और सीमा सुरक्षा सहित कई महत्वपूर्ण अभियानों में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं।
2. एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी (नौसेनाध्यक्ष):
एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी ने 30 मई 2024 को नौसेना प्रमुख का पद संभाला। 15 मई 1964 को उत्तर प्रदेश के एक गांव में जन्मे दिनेश त्रिपाठी के पिता एक शिक्षक थे। गांव के सरकारी स्कूल से पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई के बाद, उन्होंने 1973 में सैनिक स्कूल, रीवा में दाखिला लिया, जहाँ से वे 1981 में पासआउट हुए। थल सेनाध्यक्ष उपेंद्र द्विवेदी उनके बैचमेट रहे। सैनिक स्कूल के बाद, दिनेश कुमार त्रिपाठी का चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), पुणे के लिए हुआ, जहाँ से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। उन्होंने भारतीय नौसेना अकादमी, एझिमाला से नौसेना का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (DSSC), वेलिंगटन के स्टाफ कोर्स में मेडल जीता और नेवल हायर कमांड कोर्स, करंज से नौसेना संचालन की ट्रेनिंग ली। उन्होंने यूएस नेवल वॉर कॉलेज, न्यूपोर्ट से नौसेना कमांड कोर्स भी किया है। एडमिरल त्रिपाठी पश्चिमी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ के पद पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं और उप नौसेना प्रमुख (2023-2024) के रूप में नौसेना संचालन और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
3. एयर मार्शल अमर प्रीत सिंह (वायुसेनाध्यक्ष):
एयर मार्शल अमर प्रीत सिंह ने 30 सितंबर 2024 को वायुसेना प्रमुख का पदभार ग्रहण किया। उनका जन्म 27 अक्टूबर 1964 को हुआ। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), खडकवासला से ग्रेजुएशन किया है और वे थल सेनाध्यक्ष उपेंद्र द्विवेदी और नौसेनाध्यक्ष दिनेश कुमार त्रिपाठी के साथ 1984 बैच के बैचमेट हैं। एक प्रशिक्षित फाइटर पायलट के रूप में, एयर मार्शल अमर प्रीत सिंह ने मिग-21, मिग-29, सुखोई-30 MKI और कई अन्य लड़ाकू विमान उड़ाए हैं। वे एक कुशल फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर और टेस्ट पायलट भी रहे हैं। उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (DSSC), वेलिंगटन और नेशनल डिफेंस कॉलेज (NDC), नई दिल्ली से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
यह अभूतपूर्व है कि भारतीय सेना के इतिहास में पहली बार तीनों सेनाओं के प्रमुख एक ही बैच के हों और उन्होंने एक साथ मिलकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी महत्वपूर्ण कार्रवाई को सफलतापूर्वक अंजाम दिया हो। यह न केवल उनकी आपसी समन्वय और तालमेल को दर्शाता है, बल्कि देश की सुरक्षा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का भी प्रमाण है।