मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था का 'खौफनाक' सच! 6 महीने में बनने वाले संजीवनी क्लीनिक 2 साल बाद भी अधूरे। बीमार जनता, वेंटिलेटर पर सरकार के वादे।
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MP में ‘स्वास्थ्य संकट’ गहराया, 6 महीने में बनने वाले ‘संजीवनी क्लीनिक’ 2 साल बाद भी अधूरे! बीमार जनता ‘वेंटिलेटर’ पर, वादे हवा में!

मध्य प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का वादा अब एक अंतहीन इंतजार में बदल गया है। 2023 में ‘स्वास्थ्य क्रांति’ के नाम पर शुरू हुई ‘संजीवनी क्लीनिक’ योजना को केवल 6 महीनों में पूरा होना था। हालांकि, दो साल बीत चुके हैं और आज भी ये क्लीनिक अधूरे पड़े हैं।

₹1.80 करोड़ की लागत से बनने वाले 6 क्लीनिकों में से केवल 4 के सिर्फ ढांचे खड़े हुए हैं। इलाज की सुविधा तो दूर, इन भवनों में दरवाजे-खिड़कियां तक नहीं लगीं। सरकार के वादे वेंटिलेटर पर हैं, जबकि जनता बीमारियों से जूझ रही है।

सपनों की योजना, अधूरे ढांचे और टूटी उम्मीदें

इस योजना का उद्देश्य था—शहर के भीतर ही बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं देना।
सर्दी-खांसी, बुखार, मधुमेह, और टीकाकरण जैसी सुविधाएं आम लोगों को पास में ही उपलब्ध कराना तय किया गया था। ताकि, जिला अस्पताल की लंबी कतारों से राहत मिल सके।

लेकिन, ज़मीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।

इंदौर नाका और सिंघाड़ तलाई जैसे क्षेत्रों में ढांचा तो तैयार है, मगर बिजली, पानी, स्टाफ और उपकरण गायब हैं।
वहीं कुछ क्लीनिक तो अभी 60% भी पूरे नहीं हो सके हैं। इससे लोगों की उम्मीदें धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं।

ठेकेदारों को नोटिस, फिर भी नतीजा ‘शून्य’

नगर निगम ने देरी की वजह ठेकेदारों की लापरवाही को बताया है।
अब तक दो बार नोटिस भी जारी किए गए हैं। फिर भी, कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

सवाल ये है—जब योजना के लिए बजट और प्लानिंग दोनों मौजूद थे, तो फिर काम अधूरा क्यों है?

इन क्लीनिकों को उन वार्डों में बनाया जाना था, जहां 20-25 हजार की आबादी है। इसके बावजूद, लोग अब भी निजी अस्पतालों की महंगी फीस और सरकारी अस्पतालों की भीड़ के बीच फंसे हैं।

सबसे ज्यादा असर गरीबों और बुजुर्गों पर

इस योजना से सबसे अधिक लाभ गरीब वर्ग को होना था-मजदूर, गर्भवती महिलाएं, और बुजुर्ग।
उन्हें उम्मीद थी कि अब पास में ही ओपीडी, टीकाकरण और प्राथमिक जांच की सुविधा मिलेगी।

लेकिन अफसोस, ये सारी बातें सिर्फ कागजों और घोषणाओं तक ही सिमट कर रह गई हैं।

जनता के सीधे सवाल—कब मिलेगा जवाब?

  • अब जनता सरकार से सीधे सवाल कर रही है:
  • कब तक ये क्लीनिक अधूरे रहेंगे?
  • क्या ये सिर्फ चुनावी घोषणाएं थीं?
  • और सबसे अहम—बुनियादी इलाज आखिर कब मिलेगा?

अगर यही हाल रहा, तो लोगों को डर है कि ये इमारतें जल्द ही जर्जर होकर गिर भी सकती हैं।

जनता अब सिर्फ वादे नहीं, जवाब और इलाज चाहती है।

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