माझी जाति पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी, ढाई हजार लोग जनजाति प्रमाण पत्र से कर रहे सरकारी नौकरी
मुख्य बातें:
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश की हो रही अनदेखी
- आरक्षण समाप्त, लेकिन नौकरी पर कर्मचारी
- 2003 में समाप्त कर दिया गया था आरक्षण
मध्य प्रदेश में माझी जाति का जनजाति प्रमाण पत्र बनवाकर लगभग ढाई हजार व्यक्ति सरकारी नौकरी कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर ने धीवर, कहार, भोई, केवट, मल्हार, निषाद जैसी जातियों के आधार पर जनजाति वर्ग का प्रमाण पत्र बनवाया और सरकारी सेवाओं का लाभ लिया।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन जातियों को जनजाति वर्ग में मान्यता देने से इनकार कर दिया है और आदेश दिया है कि इनका आरक्षण समाप्त किया जाए, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।
जनवरी 2018 से यह आदेश प्रभावी है। इससे पहले वर्ष 2013 में भी सामान्य प्रशासन विभाग ने आदेश जारी कर माझी जाति के प्रमाण पत्र के विरुद्ध कार्रवाई स्थगित रखने का निर्देश दिया था।
2003 में तीन जातियों को किया गया था बाहर
वर्ष 2003 में केंद्र सरकार ने कीर, मीणा और पारधी जातियों को अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाहर कर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल कर दिया था। उस समय राज्य में 46 अनुसूचित जनजातियां थीं।
इसके बाद इन जातियों के प्रमाण पत्र निरस्त किए गए और कई लोगों को सरकारी नौकरियों से बाहर किया गया। हालांकि, राजस्थान में ये जातियां अब भी ST में शामिल हैं।
सरकार और याचिकाकर्ता का पक्ष
रामप्रकाश पहारिया द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि धीवर, कहार, भोई, केवट, मल्हार, निषाद जातियां ST में नहीं आतीं, बल्कि OBC में अधिसूचित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में आदेश जारी कर कहा कि इन जातियों को ST आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए।
फिर भी मध्य प्रदेश में इन जातियों के लोग शिक्षा और सरकारी सेवाओं में जनजाति आरक्षण का लाभ ले रहे हैं।
वहीं, सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय दुबे ने कहा:
“सरकार द्वारा माझी जाति के शासकीय सेवकों की सेवाएं जारी रखने के विषय में सुप्रीम कोर्ट का क्या आदेश है, यह मैंने अभी नहीं देखा है। देख कर ही कुछ कह पाऊंगा।”
संपादन: अग्रसर इंडिया न्यूज़ डेस्क, भोपाल