सपा-बसपा-रालोद गठबंधन और आक्रामक नजर आ रही कांग्रेस ने इस बार के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के लिए चुनावी संभावनाओं को कठिन बना दिया है। इससे भाजपा के लिए 2014 के प्रदर्शन को दोहराना लगभग असंभव हो गया है, जिसमें उसने 80 सीटों में से 71 पर जीत हासिल की थी।
सत्ता विरोधी लहर को मात देने के लिए भाजपा इन चुनावों में लोकसभा के कुछ सांसदों को बदल सकती है। हालांकि इस बात का भी खतरा है कि टिकट से वंचित किए गए ऐसे नेता पार्टी के सामने बागी बनकर खड़े हो जाएं। इससे भाजपा के वोट बिखर जाने का खतरा भी है, जो पार्टी के लिए चिंता का सबब है।
भाजपा द्वारा जीती गई कुछ सीटों पर नजर डालते हैं, जहां 2019 में लड़ाई आसान नहीं होने वाली। सपा-बसपा गठबंधन में रालोद के शामिल होने से बागपत सीट पर बीजेपी की जीत की संभावनाएं धूमिल दिखाई दे रही हैं।
मुजफ्फरनगर में संजीव बाल्यान के खिलाफ उनके पिता अजीत सिंह के जीतने की प्रबल संभावना है। इलाहाबाद सीट पर सपा के रेवती रमन सिंह कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हैं।भाजपा से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हुईं सावित्रीबाई फुले बहराइच सुरक्षित से लड़ेंगी। उनके जीतने की संभावनाएं अधिक दिखाई दे रही हैं। अगर बेनी प्रसाद वर्मा न उनको समर्थन दे दिया तो वे एक बार फिर से संसद में बैठेंगी। कांग्रेस नेता पीएल पूनिया अभी राज्यसभा सांसद हैं और अपने पुत्र तनुज के लिए बाराबंकी सुरक्षित सीट से टिकट की उम्मीद लगाए हैं।
कैराना, फूलपुर और गोरखपुर के लोकसभा उपचुनाव में मिली शिकस्त अभी भाजपा के लिए ताजा है। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन फिर से कैराना में वही कहानी दोहरा सकता है। सूत्रों का कहना है कि इस बार भाजपा फूलपुर की सीट फिर से कब्जाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को उतारने पर भी विचार कर रही है। भाजपा के सूत्र बताते हैं कि इस बार कानपुर सीट पर जबरदस्त टक्कर देखने को मिल सकती है। खासकर तब, जब मुरली मनोहर जोशी चुनाव न लडऩे का निर्णय करते हैं।
बसपा सुप्रीमो मायावती का अकबरपुर और अंबेदकरनगर सीटों पर काफी प्रभाव है और इस बार भाजपा के लिए कड़ी चुनौती बन सकती हैं। इसके अलावा बलिया, भदोही, चंदौली, फतेहपुर और देवरिया लोकसभा सीटें भी ऐसी हैं, जहां समाजवादी पार्टी भाजपा को कड़ा मुकाबला देने की हालत में है। उन्नाव का मुकाबला भी काफी दमदार होने वाला है।