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तुर्की का ‘धोखा’ और भारत का ‘बॉयकॉट’! जानें, व्यापार का पूरा गणित – किसको होगा अरबों का नुकसान?

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच उपजे गहरे तनाव के बीच, पाकिस्तान को तुर्की के खुले समर्थन ने भारत में एक नई बहस और गुस्से को जन्म दिया है। तुर्की द्वारा पाकिस्तान को ड्रोन और सैन्य सहायता प्रदान करने की खबरों ने भारत में ‘#बॉयकॉटतुर्की’ अभियान को हवा दे दी है, जिसका असर अब व्यापार, पर्यटन और कूटनीति पर साफ दिखाई देने लगा है। आइए, इस पूरे परिदृश्य का विश्लेषण करते हैं और समझते हैं कि इस ‘बॉयकॉट’ का भारत और तुर्की के बीच व्यापारिक रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा और किसको कितना नफा-नुकसान होगा।

पहलगाम का हमला और भारत का करारा जवाब

पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले के लिए सीधे तौर पर जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों को जिम्मेदार पाया गया। इस हमले में 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक शहीद हो गए थे। इसके बाद, भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत त्वरित और कड़ा जवाब देते हुए पाकिस्तान के कई आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया। भारतीय सेना ने आकाश मिसाइल सिस्टम जैसे स्वदेशी हथियारों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के हमलों को नाकाम किया, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “मेड इन इंडिया” हथियारों की ताकत का प्रदर्शन बताया। इसके बाद भी, 7-8 मई 2025 को पाकिस्तान ने अस्सिगार्ड सोंगर और बायरकटर टीबी2 जैसे तुर्की में निर्मित सैकड़ों ड्रोनों का उपयोग कर भारत पर हमले की नापाक कोशिश की, जिसे भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने सफलतापूर्वक विफल कर दिया। जवाबी कार्रवाई में भारत की ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तान के कई एयरबेस और इलाकों को खंडहर में तब्दील कर दिया, और इस तरह भारत के खिलाफ हमलों में तुर्की की संलिप्तता भी जगजाहिर हो गई, जिससे भारत में तुर्की के खिलाफ आक्रोश की लहर दौड़ गई।

भारत में ‘#बॉयकॉटतुर्की’ अभियान का असर

तुर्की के इस रवैये से भारत में व्यापक गुस्सा फैल गया। सोशल मीडिया पर ‘#BoycottTurkey’ ट्रेंड करने लगा, और भारतीय नागरिकों ने तुर्की के उत्पादों और पर्यटन का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। भारत और तुर्की के बीच सालाना व्यापार लगभग 10.43 अरब डॉलर (2023-24) का है, जिसमें भारत का निर्यात 6.65 अरब डॉलर और आयात 3.78 अरब डॉलर है। तुर्की से भारत मुख्य रूप से संगमरमर (70% आयात), सेब (लगभग 1.60 लाख टन सालाना) और पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। वहीं, भारत तुर्की को खनिज ईंधन, कपास, और इंजीनियरिंग सामान निर्यात करता है।

कारोबार पर दिखने लगा ‘बॉयकॉट’ का असर

  • संगमरमर उद्योग: उदयपुर के मार्बल व्यवसायियों ने तुर्की से संगमरमर का आयात बंद करने का ऐलान कर दिया है। भारत तुर्की से सालाना 14-18 लाख टन संगमरमर आयात करता है, जिसकी कीमत 2,500-3,000 करोड़ रुपये है। इस बहिष्कार से तुर्की को बड़ा आर्थिक झटका लग सकता है।
  • सेब आयात: हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्यों के फल विक्रेताओं ने भी तुर्की के सेबों का बहिष्कार शुरू कर दिया है। भारत सालाना तुर्की से 1,000-1,200 करोड़ रुपये के सेब आयात करता है।
  • पर्यटन: तुर्की की अर्थव्यवस्था का 12% हिस्सा पर्यटन से आता है, और 2024 में 2,87,000 भारतीय पर्यटक तुर्की घूमने गए थे। EaseMyTrip और Ixigo जैसे बड़े ट्रैवल प्लेटफॉर्म्स ने भारतीयों को तुर्की की गैर-जरूरी यात्रा न करने की सलाह दी है। मई-जुलाई 2025 के बीच तुर्की के लिए लगभग 2,000 बुकिंग्स रद्द हो चुकी हैं, जिससे तुर्की के पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान हो सकता है।
  • रक्षा क्षेत्र: तुर्की द्वारा पाकिस्तान को ड्रोन आपूर्ति की खबरों के बाद भारत ने तुर्की की एक फर्म सेलेबी ग्राउंड हैंडलिंग की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी, जो भारत के नौ हवाई अड्डों पर अपनी सेवाएं देती थी।

‘बॉयकॉट तुर्की’ का भारत पर कितना असर?

आर्थिक रूप से देखा जाए तो, भारत तुर्की पर बहुत अधिक निर्भर नहीं है। तुर्की के साथ भारत का व्यापार उसके कुल वैश्विक व्यापार का केवल 1-2% ही है। भारत आसानी से वैकल्पिक स्रोतों की ओर रुख कर सकता है, जैसे सेब के लिए न्यूजीलैंड और संगमरमर के लिए इटली। पर्यटन के मामले में भी भारतीय पर्यटक मालदीव, थाईलैंड और यूरोपीय देशों जैसे अन्य विकल्पों को चुन सकते हैं। इसलिए, ‘बॉयकॉट तुर्की’ का भारत पर कोई बड़ा नकारात्मक आर्थिक प्रभाव पड़ने की संभावना कम है।

भारत तुर्की को क्या बेचता है? (निर्यात)

भारत तुर्की को कई तरह की वस्तुएं निर्यात करता है, जिनमें कच्चा माल, तैयार उत्पाद और औद्योगिक सामान शामिल हैं। 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार प्रमुख निर्यात वस्तुएं और उनका अनुमानित मूल्य इस प्रकार है:

  • खनिज ईंधन और तेल: 960 मिलियन डॉलर (लगभग 8,000 करोड़ रुपये)
  • कपास और सूती धागा: लगभग 500 मिलियन डॉलर
  • इंजीनियरिंग सामान: लगभग 400 मिलियन डॉलर
  • रसायन (कार्बनिक और अकार्बनिक): लगभग 300 मिलियन डॉलर
  • एल्यूमीनियम और स्टील उत्पाद: लगभग 200 मिलियन डॉलर
  • अन्य: प्लास्टिक, रबर, मानव निर्मित फाइबर और टेलीकॉम उपकरण। तुर्की में भारतीय तंबाकू और कॉफी की भी मांग है।

भारत तुर्की से क्या खरीदता है? (आयात)

तुर्की से भारत मुख्य रूप से कच्चा माल, फल और औद्योगिक उत्पाद आयात करता है। 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार प्रमुख आयात वस्तुएं और उनका अनुमानित मूल्य इस प्रकार है:

  • खनिज तेल और पेट्रोलियम: 1.81 अरब डॉलर (लगभग 15,100 करोड़ रुपये)
  • संगमरमर (मार्बल) और ग्रेनाइट: लगभग 500 मिलियन डॉलर (भारत के कुल आयातित संगमरमर का लगभग 70%)
  • सेब: लगभग 10 मिलियन डॉलर (2023-24 में 1,60,000 टन)
  • सोना और मोती: 132 मिलियन डॉलर
  • अकार्बनिक रसायन और अन्य सामग्री: 188 मिलियन डॉलर
  • अन्य: सब्जियां, सीमेंट, लोहा और स्टील, और इलेक्ट्रिकल उपकरण।

निष्कर्ष: किसका पलड़ा भारी?

व्यापार के आंकड़ों को देखें तो, भारत तुर्की को जितना निर्यात करता है, उससे कहीं अधिक आयात करता है। खासकर पेट्रोलियम उत्पादों और संगमरमर के मामले में भारत तुर्की पर निर्भर है। हालांकि, भारत के पास इन आयातों के लिए अन्य विकल्प मौजूद हैं। दूसरी ओर, तुर्की के लिए भारत एक महत्वपूर्ण निर्यात बाजार है, खासकर खनिज ईंधन, कपास और इंजीनियरिंग सामानों के लिए। ‘बॉयकॉट’ अभियान से तुर्की के संगमरमर और सेब उद्योग को बड़ा झटका लग सकता है, साथ ही पर्यटन क्षेत्र को भी भारी नुकसान होने की संभावना है। कुल मिलाकर, इस ‘बॉयकॉट’ से तुर्की को भारत की तुलना में अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है, खासकर यदि यह अभियान लंबा चलता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध किस दिशा में आगे बढ़ते हैं।

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