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विद्युत जामवाल का शानदार एक्शन, लेकिन उबाऊ कहानी निराश करती है

जैसे ही हम ‘जंगली’ शब्द सुनते हैं, तो सबसे पहले शम्मी कपूर का वह गाना जेहन में गुनगुना जाते हैं- ‘चाहे मुझे कोई जंगली कहे’। जंगली फिल्म का यह गाना जिस तरह उत्साह से भरपूर था वह लोगों को आज भी झुमा जाता है। वहीं, 2019 में चक रसैल के निर्देशन में बनी फिल्म ‘जंगली’ उत्साहविहीन लगती है।

कहानी शुरु होती है फिल्म के हीरो राज नायर के साथ, जो कि मुंबई में रहने वाला है और जानवरों का डॉक्टर है। राज 10 सालों से मुंबई में रह रहा होता है, जब उसकी मां की बरसी पर पिता उसे वापस अपने पैतृक गांव वापस आने को कहते हैं। राज के पिता हाथियों के अभयारण्य संभालते हैं।

गांव पहुंचकर राज की मुलाकात बचपन की दोस्त शंकरा (पूजा सावंत) से होती है, जो अब एक महावत होती है। साथ ही राज की दोस्ती दो हाथियों से हो जाती- दीदी और भोली.. जो बचपन में उसके साथ ही बड़े हुए होते हैं।

लेकिन कहानी में मोड़ उस वक्त आता है जब केशव (अतुल कुलकर्णी) अपने दोस्तों के साथ मिलकर हाथियों के दांत की तस्करी करने लगता है। बाकी कहानी इसी के इर्द गिर्द घूमती है कि किस तरह राज अपने अभ्यारण्य के हाथियों को बचाता है।

हॉलीवुड निर्देशक चक रसैल ने एक्शन- एडवेंचर फिल्म जंगली के साथ बॉलीवुड में कदम रखा है। पूरी तरह से एक्शन फिल्म बनाने की जगह विद्युत जामवाल अभिनीत फिल्म जंगली इमोशनल ड्रामा है, जो शुरुआत से ही काफी उबाऊ साबित होती है। सुस्त कहानी की वजह से फिल्म का एक्शन भी दर्शकों को बिल्कुल ही इंप्रैस नहीं कर पाता है।

निर्देशक इंसान और जानवर से बीच की इस संवेशनशील कहानी को पेश करने में असफल रहे हैं। अभिनय की बात की जाए तो विद्युत जामवाल कुछ एक्शन सीन्स में काफी प्रभावशाली रहे हैं। उन्हें एक्शन का पूरा मौका भी दिया गया है। लेकिन जहां बात इमोशनल सीन्स की आती है, तो इस बारे में बात ना ही की जाए तो बेहतर है।

फिल्म की सिमेनेटोग्राफी में कुछ नया नहीं है। वहीं, गाने भी शायद ही आपको याद रहें। बैकग्राउंड स्कोर कुछ जगहों पर प्रभावी है। जंगली के बारे में हम सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि इस विषय पर इससे बेहतर फिल्म बनाई जा सकती है। हमारी तरह से फिल्म को 2 स्टार।

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